दिल मे बसा के तेरा प्यार
आँखों मे लिए तेरा इंतजार
मैं घूमा करता हु
दिखे जहा तेरे कदमो के निशान
झुक के मैं उन्हें चूमा करता हु !
तू परियों की है शहजादी
मेरे कैदी दिल की तू आजादी
आ तू मुझे रिहा कर
संग ले चल तू मुझे अपने
मुझपर तेरी नज़र मेहरबान कर !
प्यार है तुझसे
ये अगर केह दू मैं तुझसे
कही तू रूठ ना जाये मुझसे
इसलिए मैं डरता हु
तन्हाइयों मे आहे भरता हु !
साथ होती है तू
फिर भी होता है फासला
कैसे बढ़ाऊ इस दिल का हौसला
ना जाने कैसे सुलझे अब ये मसला
अब तू ही बता मैं क्या करू ?
अब मुझे तू और न तड़पा
कर दे ख़त्म ये गमो का सिलसिला
सजाई है मैंने खुद ही अपनी चिता
है गुजारिश तुझे तू आके उसे जला … !
~ हर्ष
दिनांक २० जानेवारी २०१५ च्या दैनिक प्रत्यक्षमधील डॉ. अनिरुद्ध धै. जोशी यांच्या अग्रलेखातील हर्क्युलिस आणि अफ्रोडाईटमधील प्रसंग वाचून सुचलेली कविता.
0 comments:
Post a Comment